इस्पात नगरी का प्रगतिशील दैनिक समाचार पत्र श्रम ही शक्ति का आधार ...

इस्पात नगरी एवं लघु भारत के रूप में पहचान बना चुके भिलाई से श्रमबिन्दु के प्रकाशन का उद्ेश्य श्रमिकों के हितों की रक्षा करना रहा है। अगस्त 1977 में श्रमबिन्दु का प्रकाशन साप्ताहिक (पंजी क्र. 29/16/77हृञ्ज) के रूप में प्रारंभ हुआ था। तब टे्रडल मशीन थी। कुछ समय तक प्रकाशन जारी रहा। इसी बीच रायपुर, राजनांदगांव तथा नागपुर से प्रकाशित समाचार पत्रों से जुड़ जाने के बाद साप्ताहिक श्रमबिन्दु का प्रकाशन अनियमित हो चुका था। वर्ष 1988 में दि हितवादा की सेवा से मुक्त होकर 28 जून 1988 को टेबुलाइड स्वरूप में दैनिक के रूप में श्रमबिन्दु का प्रकाशन प्रारंभ हुआ जो आज पर्यन्त 33 वर्षों से निरंतर जारी है। श्रमबिन्दु ने श्रमिकों की ताकत देखी है, परखी है तथा उनसे प्राप्त अनुभव के आधार पर तेजी से प्रसार में वृद्धि करने में सफलता भी मिली है। सीमित संसाधनों से किसी तरह 100 प्रतियां का प्रकाशन 1992 में ही हो चुका था। अकेले श्रमबिन्दु की 200 प्रतियां सुविख्यात श्रमिक नेता स्व. शंकर गुहा नियोगी से जुड़े श्रमिक ही खरीद लेते थे। बाद में श्रमबिन्दु की मांग बालोद, दल्लीराजहरा, राजनांदगांव, में भी हुई। कुछ प्रतियां इस स्थानों को भी भेजने की व्यवस्था की गई।

आज कठिन परिस्थितियों के बाद भी श्रमिक बहुल क्षेत्र कोलनगरी बैकुण्ठपुर, चिरमिरी, लौह अयस्क नगरी दल्लीराजहरा एवं किरंदुल बचेली, विद्युत नगरी कोरबा एवं बिलासपुर, राजवाड़ा, मुंगेली, राजनांदगांव, कांकेर, जांजगीर-चांपा, रामानुजगंज-बलरामपुर, जगदलपुर, दंतेवाड़ा, में जिला स्तरीय कार्यालय है जहां से श्रमबिन्दु को नियमित रूप से समाचार प्राप्त हो रहा है। लगभग दो दर्जन जिलों के पत्रकार नियमित सेवा दे रहे है। विज्ञापनों के माध्यम से सकरात्मक सहयोग के कारण श्रमबिन्दु का नियमित प्रकाशन संभव हो सका है।

शिव श्रीवास्तव
संपादक/प्रकाशक
दुर्ग से रावलमल जैन मणि द्वारा प्रकाशित दैनिक छत्तीसगढ़ में 1968-70 तक उपसंपादक के पद पर महाविद्यालय शिक्षा के दौरान कार्यरत रहा। वर्ष 1972 में रायपुर में प्रकाशित देशबंधु में कार्य किया। 25 जून 1975 को ब्यूरो प्रमुख भिलाई का दायित्व निबाहने एवं वर्ष 1981 से 1988 तक दि हितवादा, नागपुर में कार्य करने के बाद 28 जून 1988 को दैनिक श्रमबिन्दु का प्रकाशन प्रारंभ किया। पत्रकारिता हो या समाज की सेवा में उम्र कभी आड़े नही आता।

- शिव श्रीवास्तव